आचरण की प्रामाणिकता की पहचान आपदा के समय होती है
आचरण की प्रामाणिकता की पहचान आपदा के समय होती है। शान्त समय में हर व्यक्ति श्रेष्ठ और सदाचारी होता है। आपदा मनुष्य के आचरण को अपने ताप की कसौटी पर कसती है। जो निखर गया वह कुन्दन है, जो बिखर गया वह कोयला ।
महारानी कैकेयी आपदा के ताप में बिखर गयीं। यह सच है कि दशरथ ने उन्हें राम के राज्याभिषेक का निर्णय लेते समय विश्वास में नहीं लिया था, यह दशरथ की त्रुटि थी। इस कारण महारानी कैकेयी का आक्रोश उचित था, लेकिन जो कीमत महारानी कैकेयी ने इस त्रुटि के लिए दशरथ से माँगी, वह बड़ी भारी थी। भरत के लिए राज्य माँगना दशरथ को दण्ड देने के लिए पर्याप्त हो सकता था, किन्तु राम के लिए वनवास माँगना आक्रोश को प्रतिशोध की हद तक खींचना था।
भरत को समझाते हुए भरद्वाज ऋषि ने महारानी कैकेयी की इस अति का संकेत किया था।
राम गवनु बन अनरथ मूला।
जो सुनि सकल बिस्व भइ सूला॥
—सारे अनर्थ की जड़ तो राम का वन-गमन है, जिसे सुनकर समस्त संसार को पीड़ा हुई।
महारानी कैकेयी की कथा श्रेष्ठ मूल्यों से विचलन की कथा है। जब यशस्वी मनुष्य स्वार्थवश अपने आचरण को संकुचित करता है तब जीवन में उत्पात और उपद्रव की सृष्टि होती है। इसीलिए बार-बार हमारे धर्म ग्रन्थों ने दोहराया है कि उच्च पदस्थ व्यक्ति को अनिवार्यतः सदाचार करना चाहिए। जिस पर श्रेष्ठजन चलते हैं, वही मार्ग है। कैकेयी चलीं, लेकिन उनकी यात्रा मार्ग नहीं बन पाई, क्योंकि वह आदर्शों से फिसल गयी थीं……….. राकेश पाण्डेय