ज्योतिष विज्ञान के अन्वेषक महर्षियों ने इस ब्रह्माण्डीय ऊर्जा प्रवाहों को चार चरणों वाले सत्ताइस नक्षत्रों, बारह राशियों एवं नवग्रहों में वर्गीकृत किया है।
ज्योतिषां सूर्यादिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम् अर्थात सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है। इसमें मुख्य रूप से ग्रह, नक्षत्र आदि के स्वरूप, संचार, परिभ्रमण काल, ग्रहण और स्थिति संबधित घटनाओं का निरूपण एवं शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है। नभमंडल में स्थित ग्रह नक्षत्रों की गणना एवं निरूपण मनुष्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और यह व्यक्तित्व की परीक्षा की भी एक कारगर तकनीक है और इसके द्वारा किसी व्यक्ति के भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पता किया जा सकता है साथ ही यह भी मालूम हो जाता है कि व्यक्ति के जीवन में कौन-कौन से घातक अवरोध उसकी राह रोकने वाले हैं अथवा प्रारब्ध के किस दुर्योग को उसे किस समय सहने के लिए विवश होना पड़ेगा और ऐसे समय में ज्योतिष शास्त्र ही एकमात्र ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा जातक को सही दिशा प्राप्त होती है।