अयोध्या का संबंध रघुकुल से है… यह जगह भगवान श्रीराम के जीवन की एक-एक गाथा का वर्णन करती है। भगवान श्रीराम सूर्यवंशी थे। कहा जाता है जब उनका राज्याभिषेक संपन्न होने जा रहा था तब सभी देवी-देवता अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। उनमें से एक उनके कुलदेवता स्वयं सूर्यदेव भी थे।
वह स्थान जहां राज्याभिषेक से पहले सूर्यदेव ठहरे थे उसे आज सूर्य कुंड के नाम से जाना जाता है। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान राम का जन्म हुआ था तब इसी स्थान पर ठहरकर सूर्यदेव ने उनके दर्शन किये थे। सूर्यदेव इसी कुंड के स्थान पर ठहरे थे और यहीं से उनकी मनोहारी बाल लीलाओं के दर्शन करते थे।

मान्यता अनुसार जो भी व्यक्ति इस कुंड में स्नान करता है उसके शरीर की हर बीमारी दूर हो जाती है। खासकर वह व्यक्ति जिसे किसी प्रकार की स्किन प्रॉब्लम है उसे इस कुंड के पानी में अवश्य ही स्नान करना चाहिये।
सूर्य कुंड पर भगवान सूर्य का एक मंदिर भी स्थित है, माना जाता है जो व्यक्ति इस मंदिर के दर्शन कर लेता है उसके जीवन में आई विभिन्न समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। यहां स्थित सूर्य देव की प्रतिमा कुंड में से ही निकली थी।
प्राचीन मंदिर और कुंड की अद्भुत कथाएं : इस प्राचीन मंदिर और कुंड के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि अयोध्या के शाकद्वीपीय ब्राह्मण राजा दर्शन सिंह 19वीं शताब्दी ने कुंड और मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. उनके नाम पर ही कस्बे का नाम दर्शन नगर रखा गया था. दर्शन सिंह ब्राह्मण (मिश्र) थे, किंतु अंग्रेजों के समय राजाओं को सिंह की उपाधि दी जाने लगी थी. इसी कारण उन्होंने भी अपने नाम के आगे सिंह लिखना आरंभ कर दिया था. वर्तमान में राजा दर्शन सिंह, जिनका निधन 1844 में हुआ था, के वंशज विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र और शैलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र अयोध्या राज निवास में रहते हैं. इन्हें राजा अयोध्या के नाम से भी जाना जाता है. आज भी अयोध्या के राम पथ पर श्रीराम मंदिर से कुछ ही दूरी पर इस राज परिवार का भव्य महल देखा जा सकता है. शाकद्वीपीय ब्राह्मण सूर्यदेव को अपना आराध्य मानते हैं. इसीलिए राजा दर्शन सिंह ने अपने आराध्य देव के दर्शनों के लिए सूर्य मंदिर और कुंड का निर्माण कराया था.

ऐसे पड़ा तीर्थ का नाम घोषार्क : एक कथा यह भी है कि सूर्य मंदिर और कुंड के जीर्णोद्धार से पूर्व इस स्थान को ‘घोषार्क तीर्थ’ के नाम से भी जाना जाता था. इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में भी इसका जिक्र किया है. साथ ही इस तीर्थ का वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है. जिसमें वर्णन है कि इस तीर्थ में स्नान आदि से सभी पापों का नाश हो जाता है. कथा के अनुसार राजा घोष एक बार इस क्षेत्र में निकले तो देखा कि कुंड में कुछ ऋषि स्नान कर रहे हैं. राजा की इच्छा भी कुंड में स्नान की हुई. बताते हैं कि स्नान के बाद राजा का शरीर दिव्य हो गया. बाद में ऋषियों ने उन्हें तीर्थ के महात्म्य के विषय में बताया. जिसके बाद राजा ने वहां सूर्यदेव की आराधना प्रारंभ की. जिसके बाद सूर्य देव ने उन्हें दर्शन दिए. जिसके बाद राजा ने सूर्य मंदिर का निर्माण कराया. उसी समय से इस तीर्थ का नाम घोषार्क पड़ गया, जिसे बाद में सूर्य कुंड और सूर्य मंदिर के नाम से पहचाना जाने लगा.

हर वर्ष लगता है मेला : इस स्थान पर हर वर्ष मेले का आयोजन भी किया जाता है. जिसका प्रबंधन राजा दर्शन सिंह के वंशज आज भी करते हैं. सूर्य मंदिर का रखरखाव अयोध्या स्थित हनुमान गढ़ी प्रबंधन द्वारा किया जाता है. इस मंदिर में सूर्य देव की प्रतिमा के अतिरिक्त उनके चरणों में दोनों ओर सूर्य पुत्र और पुत्री शनि देव और यमुना देवी की अष्टधातु की मूर्तियां स्थापित की गई हैं. सूर्य कुंड की खोदाई से प्राप्त एक और सूर्य की प्रतिमा को भी वहीं स्थापित किया गया है. गर्भगृह में राम-जानकी, शिव-पार्वती, गणेश-कार्तिकेय, हनुमान जी तथा शालिग्राम के विग्रह भी स्थापित किए गए हैं.
सूर्य कुंड सुबह 8 बजे पर्यटकों के लिये खुल जाता है और रात 10 बजे यह बंद होता है। प्रतिदिन शाम के समय इस कुंड में लाइट एंड साउंड शो का आयोजन भी किया जाता है. जिसमें सूर्यवंश की महिमा और सूर्य मंदिर के इतिहास के विषय में बताया जाता है.