सनातन धर्म में प्रभु श्री राम आस्था के प्रतीक माने जाते हैं. त्रेतायुग में अयोध्या में प्रभु श्री राम का जन्म सृष्टि में धर्म की स्थापना के लिए हुआ था. प्रभु श्री राम भगवान विष्णु के 11वें अवतार माने जाते हैं और मान्यता है कि प्रभु श्री राम की उपासना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. भारत के विभिन्न भागों में प्रभु श्री राम को समर्पित कई पौराणिक और ऐतिहासिक मंदिर मौजूद हैं. इनमें से कई ऐसे तीर्थस्थल हैं, जिनका संबंध रामायण काल से भी जुड़ता है. इन्हीं में से एक है अयोध्या से 15 किलोमीटर दूर नंदीग्राम में स्थित भरत कुंड. लेकिन इस धाम के महत्व को बहुत कम लोग जानते हैं. श्री राम विराजमान के इस भाग में हम बात करेंगे, नंदीग्राम में स्थित भरत कुंड धाम की, जहां हुआ था श्री राम-भरत का मिलाप.
इसी स्थान पर किया था श्री राम ने पिता दशरथ का पिंडदान
नंदीग्राम में स्थित भरत कुंड के विषय में यह कथा प्रचलित है कि भगवान श्री राम जब 14 वर्षों के वनवास पर गए थे. तब उनके लौटने तक 14 वर्षों के लिए भरत जी ने इसी स्थान पर तपस्या की थी. जब प्रभु श्री राम वनवास से लौट कर आए, तब इसी स्थान पर वह अपने भाई भरत से मिले थे. मान्यता यह भी है कि नंदीग्राम में ही श्रीराम ने अपने पिता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए कुंड का निर्माण कराया था, जिसे आज भरत कुंड के नाम से जाना जाता है. यही कारण है कि इस स्थान को ‘छोटा गया’ के रूप में भी जाना जाता है. पितृपक्ष के दौरान पिंडदान के लिए यहां बड़ी संख्या में भक्त आते हैं.
भरत कुंड वह स्थान है, जहां पर भरत और हनुमान की मुलाकात हुई और एक दूसरे को गले लगाया था। यह एक शांतिपूर्ण और निर्मल जगह है।. मान्यता यह भी है कि जब भगवान श्री राम का राज्याभिषेक होना था, तब भरत जी 27 तीर्थ के जल लेकर आए थे. आधा जल उन्होंने चित्रकूट में बने कुएं में डाला था और बाकी जल भरत कुंड में बने कुएं में डाल दिया था. यह कुआं इस स्थान पर आज भी मौजूद है. इसी कुएं के पास सदियों पुराना वटवृक्ष भी है, जिसके लिए कहा जाता है कि यदि हम इसकी डालियों को ध्यान से देखते हैं तो हमें देवताओं के चित्र के दर्शन होते हैं.
भरत कुंड में 14 वर्षों तक चलने वाला सीताराम नाम कीर्तन है जारी
भरतकुंड नंदीग्राम में श्री रामजानकी मंदिर में 24 अक्टूबर 2018 से श्री सीताराम नाम कीर्तन चल रहा है जो 24 घंटे लगातार जारी रहता है। अगले 14 साल तक यह चलते रहेगा। 15 अक्टूबर 2032 को खत्म होगा। यहीं पर भगवान शंकर का मंदिर है जिसमें नंदीजी मंदिर के बाहर देख रहे हैं। आमतौर पर नंदीजी भगवान शंकर की तरह मुंह किए रहते हैं, लेकिन यहां नंदीजी का सिर शिवलिंग की तरफ से मंदिर से बाहर की ओर है। यहां एक ऐसा पेड़ है जिसकी डालियां एक दूसरे का लपेटती हैं। यहां के पुजारी रामनारायण तिवारी कहते हैं कि वृक्ष की डालियों को ध्यान से देखेंगे तो आपको देवताओं की तस्वीर दिखाई देगी। यहीं पर एक कुआं है जिसके पानी की गंगा के पानी से तुलना की जाती है। पुजारी तिवारी जी का दावा है कि सालों साल पानी रखें, कभी कीटाणु नहीं पड़ेगा। पुजारी कहते हैं कि यहां भगवान शिव भी आया करते थे।
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