दंत धवन कुंड

अयोध्या दर्पण पुस्तक में उल्लिखत है कि रामनगरी के दक्षिण में दंतधावनकुंड स्थित है। भ्राताओं सहित श्रीरामजी स्वंय यहां पधारकर दातुन किया करते थे। इसे ही राम दतौन भी कहते हैं।
यहां पर एक समय कौडिल्य नामक ब्राह्मण आकर विश्रामपूर्वक स्नान कर रहे थे, जोर से वायु चलने के कारण उनका मृगचर्म कुण्ड में जा गिरा, जिससे उस मृग का तत्काल दिव्य विग्रह हो गया और वह दिव्य विमान पर चढ़कर अप्सराओं से सेवित हो। परमधाम को चलने लगा, जाते समय #श्रीरामजी के पूछने पर उसने अपना परिचय दिया कि-मैं पूर्वजन्म में एक वैश्य था। धन के मद से गर्वित हो शास्त्र की मर्यादाओं का उल्लंघन करके काल-यापन करता था, वेश्याओं से आसत्त चित्त मैनें एक दिन अनजान में ही तुलसी में जल डाल दिया। मरने के बाद उसी पुण्य के फलस्वरूप #मृगयोनि मिलकर मेरा चर्म भजनशील महर्षि की सेवा में लगा, जिससे मुझे इस तीर्थ का स्पर्श प्राप्त हुआ। यहां के दिव्य प्रभाव से मेरे संपूर्ण पाप नष्ट हो गये हैं और यह उत्तम पद मिला, अब आपके प्रसाद से मैं समस्त दुखों से रहित होकर शाश्वत पद को जाता हूँ।
इस तीर्थ की वार्षिक यात्रा  श्रीरामनवमी के दिन करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

इस कुंड में कई दुर्लभ प्रजाती के कछुए तैरते रहते हैं। अयोध्या में उत्सव के दौरान इस कुंड के आसपास लाइटिंग की जाती है और इसे सजाया जाता है।