अयोध्या से लगभग 36 किलोमीटर दूर विकासखंड मया अंतर्गत स्थित पौराणिक स्थल श्रृंगी ऋषि आश्रम है। किंवदंती है कि संतान की कामना लेकर यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मुरादें पूरी होती है। ऐसी मान्यता है कि अयोध्या के राजा दशरथ को जब पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी तो उन्होंने गुरु वशिष्ठ से इसका उपाय पूछा। गुरु ने उन्हें श्रृंगी ऋषि से पुतेष्ठि यज्ञ कराने की सलाह दी थी।
पुतेष्ठि यज्ञ यहां सरयू नदी के दूसरे छोर पर मौजूदा बस्ती जिले के मखौड़ा नामक स्थान पर करवाया गया। पुतेष्ठि यज्ञ संपन्न करवाने के बाद श्रृंगी ऋषि ने यहां (पूर्व में यह प्रमोदवन के नाम से प्रचलित था) आकर समाधिस्थ हो गए। तभी से यह श्रृंगी ऋषि आश्रम हो गया। यहीं कारण है कि कार्तिक पूर्णिमा को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और स्नान, दान, हवन, पूजन आदि करते हैं। श्रृंगी ऋषि आश्रम स्थित रामजानकी मंदिर के महंत बताते हैं कि यहां प्रमुख स्नान पर्वो पर श्रद्धालुओं का आमदरफ्त स्नान पर्वो पर प्राचीन काल से ही होती रही है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रद्धालुओं का जनसैलाब यहां जिस तरह से उमड़ता है उससे उनका भक्ति रस स्वत: परिलक्षित हो जाता है। श्रद्धालुगण यहां आकर श्रृंगी ऋषि के समाधि के सम्मुख अपनी फरियाद करते हैं। बगल में स्थित मां शांता देवी की गुफा में भी वे मत्था टेंकना नहीं भूलते। यहां जाति-पांति का कोई भेदभाव नहीं है। यहां लगभग हरेक जातियों का पंचायती मंदिर बने हुए हैं। श्रद्धालु हर मंदिरों में जाकर पूजन व अर्चन करते हैं। सरयू नदी की गोद में बसे इस पौराणिक स्थल पर साधु संतों की मंडली भी इस मौके पर उपस्थित होती है।