बहुमत के आगे इकलौते रामलाल की कौन सुनता?
एक बार शादी समारोह के उपरांत एक बारात वापस लौट रही थी। जंगल का रास्ता था और समय पर बाराती जंगल पार नहीं कर पाए।
रात हो गई तो वे रास्ता भूल गये। फिर सुबह हुई लेकिन दिन भर भटकने के बाद भी उन्हें कोई गांव न मिला।
आखिर भूखे प्यासे वे कब तक रहते। किसी तरह उन्होंने एक नदी ढूढ़कर प्यास तो बुझा ली, लेकिन अब समस्या खाने की थी।
जंगल में कौओं को छोड़कर और कोई पशु पक्षी भी नहीं दिखाई दे रहे थे।
भूख से बिलबिलाते कुछ युवकों ने कौओं को ही मारकर खाने का निर्णय ले लिया। बारातियों में से ही किसी बीड़ी पीने वाले के पास माचिस थी तो उसने लकड़ियां ढूढ़कर आग लगा दी।
रात का समय था तो उन्हें कौओं को पकड़ने में भी ज्यादा परेशानी नहीं हुई।
कौवे पकड़-पकड़ कर आते रहे और लोग उसे भून-भूनकर खाते रहे। उन युवकों की देखादेखी धीरे-धीरे सभी बारातियों ने कौवे भूनकर खा लिए लेकिन उन्ही बारातियों में ‘रामलाल’ भी था, जिसने कहा कि चाहे भूख से तड़पकर मर जाऊँ यह स्वीकार है, लेकिन कौआ नहीं खाऊंगा।
रात गुजर गई। दूसरे दिन सौभाग्य से चरवाहों की मदद से उन्हें बाहर निकलने का रास्ता भी मिल गया। लेकिन अब समस्या यह थी कि रामलाल जिसने कौआ नहीं खाया था वह जाकर पूरे गांव में यह बात बताएगा कि सबने कौआ खाया है। इस बात पर मंत्रणा हुई फिर सर्वसम्मति से एक योजना बनाई गई।
वे लोग जैसे ही गांव के नजदीक पहुँचे सारे एक साथ चिल्लाने लगे। “राम लाल ने कौआ खाया है।”
“बहुमत के आगे इकलौते रामलाल की कौन सुनता?”