पंडित श्रीधर दुबे जी "व्यास "

पंडित श्रीधर दुबे जी “व्यास ” का जन्म 15 अक्तूबर 1966 को उत्तर प्रदेश की पवित्र नगरी अयोध्या के पास एक छोटे से गांव गोन्राद में हुआ था। उनके पिता श्री राम मूर्ति द्विवेदी तथा उनकी माता श्रीमती शान्ति देवी ब्राह्मण थे, जो रामान्ंदन आचार्य सम्प्रदाय ब्राह्मण समुदाय से संबंध रखते हैं। व्यास जी के दो भाई तथा दो बहने हैं और वह विवाहित हैं तथा उनका एक पुत्र तथा एक पुत्री हैं।

व्यास जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दुभाहा बाजार जूनियर हाई स्कूल में प्राप्त की थी और उसके बाद वह गुरूकल “तोताद्रि मठ”, श्री अयोध्या धाम में चले गए जहां उन्होंने स्वामी नारायण दास जी महाराज के दिशा निर्देश में माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा ग्रहण की। 14 वर्ष की आयु में उनका “वैष्णव तिलक” हुआ और मंत्रों का जाप करना प्रारंभ किया। उन्होंने संत श्री राम हर्षन दास जी महाराज के दिशा-निर्देश के अन्तर्गत वेदों तथा उपनिषदों में अपनी स्नातक डिग्री प्राप्त की।

एक रात सोते समय व्यास जी को स्वप्न में भगवान हनुमान जी ने दर्शन दिए और कहा कि इस पृथ्वी पर लोगों के कल्याण के लिए तैयार हो जाओ और अचानक वह अदृश्य हो गए। अगले दिन प्रात: वह जल्दी उठे और अपनी पूजा करने के बाद उन्होंने व्रत लिया कि वह अपना आगे का सारा जीवन पूरे विश्व में लोगों के कल्याण में लगा देंगे और प्रतिज्ञा ली कि वह अपने जीवन में 108 यज्ञ पूर्ण करेंगे और किसी भी स्थिति में प्रतिदिन 6000 मंत्र राज का जाप करेंगे और यदि किसी भी प्रकार से 6000 मंत्रों के जाप में से एक भी मंत्र का जाप छूट जाता है तो वह उस दिन भोजन ग्रहण नहीं करेंगे। अब तक वह भारत के विभिन्न भागों में 31 यज्ञ सम्पूर्ण कर चुके हैं और उनका यह प्रण जारी है।

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिला के लोग आज भी व्यास जी द्वारा 16 वर्ष की आयु में की गई उनकी प्रथम राम कथा को स्नेहपूर्वक याद करते हैं। जिसमें हर एक व्यक्ति व्यास जी के इस कौशल, प्राकृतिक सम्मोहन, तेज तथा करिश्में से बहुत अधिक विस्मित हुआ था। उसके बाद से वह भारत के विभिन्न गांवों, शहरों, नगरों में राम कथा, भगवत कथा, गीता उपदेश जैसी पचास से अधिक कथाएं कह चुके हैं।

उत्तर प्रदेश के जिला बलरामपुर के गांव परसिया बहुरी में 1992 में आयोजित राम कथा बहुत अधिक सफल हुई थी।

व्यास जी ने आधुनिक जीवन की नियमित कि्रयाकलापों से अपना ध्यान हटाते हुए कुछ वर्ष हिमालय में जाकर व्यतीत किए। उन्होंने अपनी गहन साधना और सख्त अनुशासन एवं वेदना के माध्यम से अपने भविष्य के लक्ष्य को और अधिक स्पष्ट करने में सक्षम हो पाए। वर्तमान में, उनके लगभग 500 से अधिक शिष्य हैं जो उनके मार्गदर्शन में उनके लक्ष्य और मिशन को फैलाने में लगे हुए हैं।

इस समय, व्यास जी भारत के विभिन्न भागों में वैष्णव क्षेत्र में एक विख्यात व्यक्तित्व है। इस समय वह न केवल राम कथा, भगवत कथा, भजन एवं सत्संग में अपने आपको रमाए हुए हैं बल्कि पवित्र ग्रन्थों के उपदेशों को पूरे देश की जनता में फैला रहे हैं।

व्यास जी के दादा जी के भाई बाबा मनीराम दास जी एक साधु थे जिनका बहुत गहरा प्रभाव व्यास जी के जीवन पर पड़ा है। वह जब भी व्यास जी के घर आते थे उनको कई भारतीय वैदिक कथाएं और आध्यात्मिक कहानियां सुनाया करते थे । व्यास जी के जीवन पर दूसरा सबसे गहरा प्रभाव उनकी माता जी का है जो रोज प्रात: राम चरित मानस का पाठ किया करती थीं जिसे सुनकर व्यास जी बड़े हुए। व्यास जी के प्रारंभिक जीवन में, उनके आध्यात्मिक वंश तथा सन्तों जैसे संस्कार व्यास जी में आनुवंशिक रूप से विद्यमान थे और असाधारण विशेषताएं प्रकट होनी आरंभ हो गईं जो कि उनकी बाल्यावस्था में ही दिखनी आरंभ हो गई थी। उनकी माता जी का इस ओर ध्यान गया कि उनके पुत्र की आयु के बालक जिस समय खेलने में व्यस्त रहते
थे, उधर दूसरी ओर व्यास जी पवित्र हिन्दु पुस्तकों और धार्मिक ग्रन्थों के अध्ययन मनन में लगे रहते थे । वह कई बार अध्ययन के दौरान छुप जाया करते थे जिससे कि कोई उनको अध्ययन के दौरान परेशान न कर सकें ।