नागेश्वर नाथ मंदिर

नागेश्वर नाथ मंदिर का इतिहास

राम की पैड़ी पर स्थित यह प्रसिद्ध मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान राम के पुत्र कुश ने इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था. बताया जाता है कि एक शिवभक्त नाग कन्या से प्रेम होने के कारण उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था इसलिए यह मंदिर नागेश्वरनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है.

क्या है धार्मिक मान्यता?

यह प्राचीन शिव मंदिर राम की पौैड़ी पर स्थित है, माना जाता है कि भगवान शिव का यह मंदिर देश के 12 जोतिर्लिंगों में से एक है. हर साल शिवरात्रि का पर्व इस मंदिर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. शिवरात्रि के पर्व में यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं. मान्यता है इस मंदिर में किए बिना प्रभु श्रीराम के दर्शन अधूरे माने जाते हैं.

भगवान शिव को समर्पित है मंदिर

इस मंदिर का नाम नागेश्वरनाथ मंदिर क्यों पड़ा इसके पीछे भी रोचक कहानी है.
ऐसी मान्यता है कि एक बार भगवान श्रीराम के पुत्र कुश सरयू में स्नान कर रहे थे, तभी उनके हाथ का कड़ा नदी में गिर गया. जिसे काफी देर तक कुश ने ढूंढा, लेकिन वह नहीं मिला. वहीं, सरयू में कुमुद नाम के एक नागराज रहते थे, जिन्हें वह कड़ा मिल गया और उसे लेजाकर उन्होंने अपनी पुत्री को दे दिए. लेकिन जैसे ही इस बात की जानकारी कुश को लगी तो वह कड़ा मांगने लगे. लेकिन कुमुद राज ने देने से इनकार कर दिया.

ये थी कड़ा न देने की वजह

कड़ा को लेकर कुश और कुमुद राज में काफी बहस होने लगी. कुमुद राज का कहना था कि हमारी संस्कृति में बेटी को दिया गया उपहार वापस नहीं लिया जाता है. लेकिन कुश अपनी बात पर अड़ गए. विवाद अब युद्ध की नौबत तक पहुंच गया. कुश ने धनुष उठा लिया और पृथ्वी पर से नाग वंश के संहार करने की ठान ली. ऐसे में कुमुद राज ने भोलेनाथ से रक्षा की गुहार लगाई. जिसके बाद शिव जी प्रकट हुए और कुश को शांत कराया.

नागेश्वर नाथ मंदिर की स्थापना

कथानुसार, भगवान भोलेनाथ ने कुश को शांत तो करा दिया था, लेकिन विवाद अभी जारी था. ऐसे में भगवान भोलेनाथ ने तीसरा रास्ता निकाला. उन्होंने कुमुद नाग की पुत्री कुमुदिनी से प्रभु श्रीराम के बेटे कुश की शादी कराने का विचार किया. इस रास्ते से समस्या का हल निकल आया. जब भगवान शिव अयोध्या नगरी से जाने लगे तब कुश जी ने महादेव से आग्रह किया की आप न जाएं और अयोध्या नगरी में ही वास करें। कुश जी के कहने पर भगवान शिव ने उनकी बात का मान रखा और ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हो गए। नाग लोक के देवता होने के कारण कुश जी ने भोलेनाथ के ज्योतिर्लिंग को नागों के नाथ अर्थात नागेश्वरनाथ के नाम से संबोधित किया और अयोध्या में स्वर्ग द्वार नाम के स्थान पर उन्हें विराजित किया।

नागेश्वर नाथ नाम से विख्यात हुए अयोध्या में महादेव

जिस जगह भगवान शिव प्रकट हुए थे वहां पर कुश जी नें शिवलिंग स्वयं स्थापित किया वहीं मंदिर अयोध्या धाम में नागेश्वरनाथ मंदिर नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज भी वही ज्योतिर्लिंग इस मंदिर में विराजित है। यह मंदिर राजा विक्रमादित्य के शासन काल तक अच्छी स्थित में था| 1750 में इसका जीर्णोधार नवाब सफ़दरजंग के मंत्री नवल राय द्वारा कराया गया था| शिवरात्रि का पर्व इस मंदिर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. शिवरात्रि के पर्व में यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं. यहाँ शिव बारात का भी बड़ा महात्म्य है| शिवरात्रि के पर्व में यहाँ लाखों की संख्या में दर्शनार्थी एवं श्रद्धालु उपस्थित होते हैं| मान्यता है इस मंदिर में किए बिना प्रभु श्रीराम के दर्शन अधूरे माने जाते हैं.

सोमवार के दिन यहां भक्त जन दर्शन करने आते हैं। शिवरात्रि, नागपंचमी और सावन के दिनों यहां लोखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। यह मंदिर श्री राम जन्मभूमि से 2-3 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर उसी जगह पर है जहां अयोध्या दीपोत्सव कार्यक्रम का अयोजन होता है। भगवान नागेश्वरनाथ का दर्शन करना साक्षात महादेव के दर्शन करने के समान माना जाता है। मंदिर प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में खुल जाता है।