भगवान भक्त के लिए क्या कुछ नहीं करते. अगर भक्त का प्रेम व भक्ति सच्ची हो तो भगवान उसके सारथी तक बनकर उसका रथ चलाते हैं. अगर भक्त का भाव सच्चा हो तो भगवान खम्बे तक से प्रकट हो जाते हैं. ऐसी ही एक कथा का वर्णन आता है भक्तमाल जी में. जब एक भक्त के लिए माता सीता ने बनाई रसोई-
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक नगर में एक बहुत ही सरल व्यक्ति रहता था, जिसका नाम था श्याम. उसमे वैसे तो सारे गुण थे परंतु एक ही अवगुण था और वह था कि श्याम खाता बहुत था. उसकी खुराक बहुत थी, वह अकेले ही 10 लोगों का भोजन खाने में सक्षम था. एक बार उसके परिजनों ने उसकी इस आदत से परेशान होकर उसे घर से ही निकाल दिया. उसे कुछ समझ नहीं आया, उसे फ़िक्र थी तो बस भोजन की.
वो बिचारा सीधा-साधा व्यक्ति ऐसे ही रास्ते पर चल निकला. चलते-चलते उसने देखा, एक जगह बड़े ही हष्ट-पुष्ट साधु बैठे हुए थे और उनके साथ उनके कुछ शिष्य भी थे और उनकी भी सेहत काफी अच्छी थी. यह देख उसने साधु को प्रणाम किया और उन्हें अपनी स्थिति बताई, जिस पर उन्होंने उसे अपने साथ आश्रम चलने को कहा और जितना चाहे उतना भोजन देने का आश्वासन भी दिया. इसके बदले काम था केवल हरि नाम का जप.
अब तो श्याम की ज़िन्दगी में सब बहुत अच्छा हो गया. भर पेट भोजन और हरि भजन बस. कुछ दिन बीते तो एक दिन श्याम ने देखा, आज सब पूजा पाठ में ही लगे हैं, कोई भोजन नहीं बना रहा है. यह देख वो तो चिन्तित हो गया और भागा-भागा साधु जी के पास गया और इसका कारण पूछा. जिस पर संत ने बताया, “बेटा आज एकादशी है तो सबका व्रत है, हमारे यहां का नियम है कि एकादशी को निर्जला व्रत रखकर पूरे दिन हरि का भजन होता है.”
उसने संत से विनती की कि उसके लिये तो व्रत कर भूखा रहना नामुमकिन है, वह तो मर ही जाएगा. संत ह्रदय तो होता ही है कोमल तो महाराज जी ने उसे एक युक्ति बताई कि वह जरूरी सामग्री अपने साथ ले जाए और वन में जाकर भोजन बनाए और खाए परंतु पहले प्रभु राम को भोग लगाए, तभी प्रसाद पाए. यह कहकर उसे 20 किलो आटा आदि देकर वहां से विदा किया.
उसने वन में आकर भोजन तैयार किया एवं गुरु आज्ञा से भोग लगाने लगा, “राजा राम जी आओ, प्रभु राम जी आओ, मेरे भोजन का भोग लगाओ.” इधर भगवान भी आज विनोद करने के मुड़ में थे तो सच में माता सीता सहित उसके सम्मुख प्रकट हो उसका भोजन खाने लगे. भगवान ने उसके लिए थोड़ा सा ही छोड़ा और अन्तर्ध्यान हो गए. अब उसने जैसे-तैसे बचे हुए भोजन से पेट भरा और वापस आ गया.
समय बिता दूसरी एकादशी आई, इस बार उसने कहा कि मुझे 20 किलो आटा कम पड़ा, 40 किलो आटा और बाकी सामग्री दो. संत ने सोचा इसका पिछली बार पेट नहीं भरा होगा, इसलिए मांग रहा है, सो दे दिया. वो फिर वन में आया भोजन बनाया और भगवान को बुलाने लगा, “राजा राम जी आओ, सीता राम जी आओ, मेरे भोजन का भोग लगाओ.” भगवान प्रकट हुए और इस बार माता सीता और साथ में भाई लक्ष्मण को भी ले आए. तीनों ने भोजन किया तो अब दुबारा श्याम के लिए थोड़ा सा ही बचा, उसने बचा हुआ खाया और आश्रम को लौट आया.
कुछ दिनों बाद पुनः एकादशी आई और उसने फिर से राशन मांगा और बोला, गुरू जी आपने केवल राम जी को भोजन कराने को कहा था, वहां तो पूरा परिवार आने लगा, आटा कम पड़ता है. इस बारे मुझे 60 किलो आटा दो. अब 60 किलो आटा सुनकर तो संत को भी संशय हुआ कि यह झूठ बोल रहा है. भगवान थोड़े ही इसका भोजन करने आते होंगे. यह आटे को बेच देता होगा. यह सोच संत ने उसे आटा तो 60 किलो दे दिया परंतु उसका पीछा करने का निश्चय किया.
इधर आज वन आकर उसने भोजन बनाए बिना भगवान को बुलाया, “सीता राम जी आओ, लक्ष्मण राम जी आओ, मेरे भोजन का भोग लगाओ.” परंतु आज तो प्रभु श्री सीताराम अपने तीनों भाइयों और हनुमान जी सहित पधारे. उन्हें देख श्याम ने उन्हें प्रणाम किया और बोला, “देखो प्रभु, मैं ठहरा आलसी जीव, मुझसे खुद के लिए ही भोजन नहीं बनता, और आप पूरा खानदान लेकर आ जाते हो, अंत में मिलता मुझे कुछ है नहीं, तो लो यह रहा राशन, खुद बनाओ और खाओ.” यह सुन भगवान राम मुस्कुराए और सभी काम पर लग गए, हनुमान जी को लकड़ी लाने भेजा, भरत-शत्रुघ्न ने सब्जी आदि काटी, माता सीता ने रोटी बनाई और लक्ष्मण ने उनकी सहायता की.”
इधर गुरुजी भी यह सब देख रहे थे और उनके नेत्रों से अश्रु बहने लगे और उन्होंने सोचा कि यहा दाढ़ी सफ़ेद हो गई, पूरा जीवन निकल गया परंतु कभी प्रभु के दर्शन नहीं हुए और इस निश्चल सरल श्याम ने भगवान को प्रकट कर लिया. उधर माता सीता ने रसोई बनाई, सभी ने बड़े प्रेम से भोजन पाया और भगवान श्री सीता राम जी महाराज श्याम को आशीर्वाद देकर वहां से अंतर्ध्यान हो गए.